हम दीवानों की मस्ती आलम है
आज यहा कल वह होता नही
अपना स्थिर रेन बसेरा जहा हमारे
मन में आए वहा डाले डेरा
खाते है मेहनत कि रोज़ी -रोटी
यह भी चिंता नही कौन सी छोटी
कौनसी मोटी
मारेगे गर्म लोहे पर घन
जो हमारी इज्ज़त से कुचलदेगे
उसका फन नाम है
नाम है हमारा बंज़र
अपने धर्म के खातिर
बन जाए अंगारा सड़क फूतपत
हमारा आवास है खुले आसमान में
बन्दा करता निवास है
शारीरिक रूप से होते बलशाली
जुग्गी झोपडी में मन लेते होली
व दिवाली
करती है सरकार शिक्षा व नौकरियों
में योगदान
हम भी प्रगति से चूम लेगे आसमान
Friday, April 3, 2009
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