sunil kumar sagar

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Sunday, February 8, 2009

बदलते क्षण हमारे संग

किस -किस की बात कहे ।

यहाँ कोई किसी से कम नही |।

सब के आचरण को जंग लगा ।

नैतिक कोष में दम नही |।

जरा गांवो की देखो दशा ।

सभी संस्कृति के प्रतीक बनो |।

प्यार एकता और सुरक्षा ।

सदा सादगी से सजे रहे |

शान्ति धर्म को पथ चुना ;

जन सेवा में लिप्त रहे ।
लगी हैं लू पश्चिम की । ।
संकृति के पौधे सूख गये ।
चली हैं आधी मंहगाई की ।
धैर्य सुमन टूट गये । ।
अब पथ गगन दुर्लब हुआ ।
थक किनारे बैठ गये । ।

चली धूप टी ० वी ० की।
ल्ज्ज़ा वस्त्र उतर गये ॥
समस्या बडी जटिल हैं ।
रास्ता अपना बदल गये ॥
स्वार्थ हिंसा धोका अधर्म ।
पथ पर हमको सब मिले ॥
पर मिला कही धर्म नही ।
किस -किस की बात कहे ।

यहाँ कोई किसी से कम नही |।







Thursday, February 5, 2009

माँ की ममता


तू है जग के जननी माता
तेरे अनेक रूप है माता
यदि घर में प्रवेश करती है माता
तो घर को स्वर्ग बना देती है माता
यदि घर से रूठ जाय तो
घर को श्मशान बना देती माता
माता तेरे आचल की दो बूँद के प्यासे हम
दो बूँद पिलाकर हमारा जीवन अमर कर दो माता
अगर बोलती है तू मधुर वाणी माता
हमें चढ़ जाती बचपन में भी जवानी माता
हमें खिलाती दूध दही
खुद भूखी सो जाती माता
तू है जग कि जननी माता
तेरे अनेक रूप है माता